अमेरिका और भारत: GE414 इंजन डील में टेक्नोलॉजी ट्रांसफर की मुश्किलें भारत और अमेरिका के बीच रक्षा सहयोग बीते कुछ वर्षों में गहरा हुआ है।

लेकिन, लड़ाकू विमानों के जीई 414 इंजन की टेक्नोलॉजी ट्रांसफर डील में कई कठिनाइयां सामने आ रही हैं। यह डील न केवल भारत की रक्षा क्षमताओं को उन्नत कर सकती है, बल्कि आत्मनिर्भरता की दिशा में भी अहम कदम साबित हो सकती है।GE414 इंजन, जनरल इलेक्ट्रिक द्वारा निर्मित, एक आधुनिक और शक्तिशाली इंजन है। यह इंजन हल्के और मध्यम श्रेणी के लड़ाकू विमानों के लिए डिज़ाइन किया गया है। इसकी प्रमुख विशेषताएं हैं उच्च शक्ति उत्पादन, ईंधन दक्षता, और कम रखरखाव की आवश्यकता।
8 साल से अटका है प्रोजेक्ट
पांचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमानों के लिए एक नया लड़ाकू जेट इंजन विकसित करने का एक बड़ा प्रोजेक्ट पर चर्चा आठ साल से अधिक समय से अटका हुआ है। इसकी वजह है कि फ्रांस के साथ चर्चा मूल्य निर्धारण के मुद्दों पर रुका हुआ है। अमेरिका के साथ यह सौदा महत्वपूर्ण है क्योंकि 99 इंजन भारत में बनाए जाएंगे। ये इंजन हल्के लड़ाकू विमान के Mk2 एडिशन को ताकत देंगे। वायु सेना ने 120-130 तेजस Mk2 लड़ाकू विमानों की जरूरत का अनुमान लगाया है, जिसे स्वीकार किए जाने पर ऑर्डर का आकार 99 इंजनों से अधिक होने की संभावना है।
भारत अमेरिका रक्षा सौदा
अमेरिका के साथ फाइटर जेट इंजन टेक्नोलॉजी ट्रांसफर की डील मुश्किल में है। इसमें GE414 INS6 इंजन की 80% से अधिक टेक्नोलॉजी ट्रांसफर होगी। भारतीय साझेदार एचएएल के साथ गहन तकनीकी चर्चा की वजह से लागत बढ़ने की संभावना है। रक्षा मंत्रालय से अतिरिक्त मंजूरी की जरूरत होगी।
अमेरिका के साथ फाइटर जेट इंजन टेक्नोलॉजी ट्रांसफर की डील मुश्किल का सौदा मुश्किल में पड़ गया है। हालांकि, सौदे को लेकर उम्मीद खत्म नहीं हुई है। सूत्रों ने बताया कि बातचीत जारी है। साथ ही भारतीय साझेदार हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) के साथ गहन तकनीकी चर्चा के बाद इसकी लागत में वृद्धि होने की संभावना है। इस सौदे के परिणामस्वरूप GE414 INS6 इंजन की 80% से अधिक टेक्नोलॉजी ट्रांसफर होगी।

कंपनी ने नहीं दिया को जवाब
अधिकारियों ने पहले कहा था कि यह सौदा करीब 1 अरब अमेरिकी डॉलर का है। इसमें टेक्नोलॉजी ट्रांसफर और भारत में एक उत्पादन लाइन की स्थापना शामिल होगी। इसे शुरू में 99 इंजनों का ऑर्डर मिलेगा। अमेरिकी निर्माता जीई एविएशन ने हमारे सहयोगी अखबार ईटी की तरफ से भेजे गए सवालों पर कोई टिप्पणी नहीं की।
पहले भी इस तरह की आई है स्थिति
प्रारंभिक अनुमानित कीमत से अधिक कीमत टेक्नोलॉजी ट्रांसफर से जुड़े प्रमुख रक्षा सौदों में इसी तरह की समस्याओं की सीरीज में यह सबसे नया मामला है। 2016 में राफेल लड़ाकू विमान सौदे पर हस्ताक्षर होने से पहले, यह कई वर्षों तक लटका रहा क्योंकि घरेलू प्रोड्क्शन की अधिक लागत के कारण HAL के साथ चर्चा में बाधा उत्पन्न हुई। इसी तरह, स्कॉर्पीन पनडुब्बी सौदे में भी लागत और समय में बड़ी वृद्धि हुई।
रक्षा मंत्रालय से अतिरिक्त मंजूरी की जरूरत
अमेरिका के साथ इस डील में इंजन के गर्म सिरे के लिए कोटिंग के साथ-साथ क्रिस्टल ब्लेड और लेजर ड्रिलिंग तकनीक भी शामिल है। हालांकि, अब शुरुआती अनुमानित कीमत अधिक होने की संभावना है। संशोधित अतिरिक्त लागतों को एडजस्ट करने के लिए रक्षा मंत्रालय से आंतरिक मंजूरी की आवश्यकता होगी।
नेवी के लिए डबल इंजन वाला फाइटर जेट
भारत नेवी के लिए डबल इंजन वाले डेक-आधारित फाइटर प्लेन भी विकसित कर रहा है, जो संभवतः F414 के जरिये संचालित होंगे। भविष्य के एडवांस मल्टी पर्पज फाइटर प्लेन के पहले दो स्क्वाड्रन भी इसी इंजन से ऑपरेट होंगे। HAL ने नई सुविधा के लिए बेंगलुरु में पहले ही जमीन की पहचान कर ली है। कॉन्ट्रैक्ट पर साइन होने के दो साल के भीतर इसे चालू करने की योजना है।
निष्कर्ष
अमेरिका और भारत के बीच GE414 इंजन डील में टेक्नोलॉजी ट्रांसफर को लेकर जो चुनौतियां सामने आ रही हैं, वे दोनों देशों के लिए कूटनीतिक और सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं। यह डील भारत के लिए न केवल उसकी रक्षा क्षमताओं को मजबूत करने का एक अवसर है, बल्कि आत्मनिर्भर भारत की दिशा में एक बड़ा कदम भी हो सकती है।
टेक्नोलॉजी ट्रांसफर के मुद्दे पर अमेरिका की सतर्कता और भारत की आत्मनिर्भरता की जरूरत के बीच संतुलन बनाना बेहद आवश्यक है। भारत की घरेलू उत्पादन क्षमता को बढ़ाने और उच्च तकनीक तक पहुंचने के लिए इस डील का सफल होना अनिवार्य है।